कुछ नेताओं की रोज़ी रोटी इस बात पर चलती है कि समूहों के टकराव को जितना बढ़ाएँगे चढ़ाएँगे, जितने उत्तेजक नारे लगाएँगे, जितने भ्रामक तर्क पेश करेंगे, उतना ही दोनों कमाएँगे, सत्ता के क़रीब आएँगे...
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उपरोक्त उदाहरणों को यहाँ प्रस्तुत करने का मायना है कि समय के साथ साथ अब जा कर चोलियाँ माडिया स्त्री जीवन में स्वयं उपस्थित हुई और हो भी जायेंगी किंतु इस प्रक्रिया को किसी भ्रामक तर्क के आईने में देखना उचित नहीं।
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कुछ नेताओं की रोज़ी रोटी इसी बात पर चलती है टकराव को जितना बढ़ाएँगे चढ़ाएँगे, जितने उत्तेजक नारे लगाएँगे, जितने भ्रामक तर्क पेश करेँगे, उतना ही दोनों कमाएँगे, सत्ता के क़रीब आएँगे … कई बार लगता है दोनों मेँ मिलीभगत है …